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हिचकी / हरीश बी० शर्मा

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म्हारी जिनगाणी रे रोजनामचे में
थारी ओळूं
हिचकी बण'र उभरे
अर बिसरा देवै सै कीं
म्हारो आगो-पाछो
ऊंच-नीच
हां, सैं कीं
चावूं, नीं थमे हिचकी
भलां ही हिचकतो रूं सारी उमर
अर थारै नांव री हिचकी ने
देंवतो रूं दूजा-दूजा नांव
दाब्या राखूं म्हारो रोजनामचो
जाणूं हूं
थारै अर म्हारे बिचाळै री आ कड़ी
जे टूटगी तो फेर कांई रैवेला बाद-बाकी
इण साचने सोधण बाद
म्हें हूं म्हारे दुख-सुख रो जिम्मेवार
पण बता तो सरी
थूं कियां परोटे है म्हारे नांव री हिचकी