हिज्र के सवाल पे वबाल कम नहीं हुआ
चुप रहे भले मगर मलाल कम नहीं हुआ
दोस्तों ने डाल दी क़बा-ए-ख़ार, हाय रे..
ज़िन्दगी-सराय में कमाल कम नहीं हुआ
इस तरह लगाव था कि सिर कटे को देखकर
धड़ पकड़ लिया गया उछाल कम नहीं हुआ
सोचते रहे निजात किस तरह मिले मगर
दिन-ब-दिन बढ़ा किया ये जाल कम नहीं हुआ
इक तरफ़ फ़रेब था तो इक तरफ़ थी उलझनें
दिल दबा था बीच में हलाल कम नहीं हुआ