भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हिज्र में इतना ख़सारा तो नहीं हो सकता / अफ़ज़ल गौहर राव
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:10, 3 नवम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अफ़ज़ल गौहर राव }} {{KKCatGhazal}} <poem> हिज्र म...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हिज्र में इतना ख़सारा तो नहीं हो सकता
एक ही इश्क़ दोबारा तो नहीं हो सकता
चंद लोगों की मोहब्बत भी ग़नीमत है मियाँ
शहर का शहर हमारा तो नहीं हो सकता
कब तलक क़ैद रखूँ आँख में बीनाई को
सिर्फ़ ख़्वाबों से गुज़ारा तो नहीं हो सकता
रात को छील के बैठा हूँ तो दिन निकला है
अब मैं सूरज से सितारा तो नहीं हो सकता
दिल की बीनाई को भी साथ मिला ले ‘गौहर’
आँख से सारा नज़ारा तो नहीं हो सकता