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हिन्दी / सुशीला सुक्खु

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हिन्दी हिन्दुस्तानी की अपनी भाषा।
हिन्दुस्तानी की है यह असली पहचान॥

मिले उसे सम्मान, हो इसका उत्थान।
है यही मेरी हार्दिक अभिलाषा॥

हिन्दुस्तानी होकर हिन्दी नहीं बोलनी आती।
एसे लोगों से जाति की करो रक्षा विधाता॥

जीवित होकर खुद को ममी-डैडी कहलाते।
घृणा करें निर्धन बच्चों से, कुत्तों को सहलाते॥

भाव हिन्दी भाषा के प्रति, जब नेता जी में जागे।
बोले हिन्दी की उन्नति से देश बढ़ेगा आगे॥

किन्तु नाम हिन्दी में लिखना उनको कभी न भाता।
ऐसे लोगों से देश की रक्षा करो विधाता॥

हिन्दी नें जीना सिखलाया, हम आज भी खाते हैं रोटी।
लेकिन त्रैई, पैजामा, दास में हम भूले कुर्ता-धोती॥

पिता व्याख्याता हिन्दी के, पुत्र होल्लान्स बोलता जाता।
ऐसे लोगों से भाषा की रक्षा करो विधाता॥

हमारे सम्मलित प्रयास से ही, हिन्दी का दौर निराला आए।
हम सब मिलकर हिन्दी के लिए आगे बढ़ें, और इसको अपनाएँ॥

हिन्दी मेरी शान है, हिन्दी मेरा मान।
हिन्दी ही इज्जत आस्था, हिन्दी मेरा प्राण॥