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हिमालय / श्रीनाथ सिंह

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लखो हिमालय है क्या लेटा।
हो मानो पृथ्वी का बेटा।
यदि वैसा तुम भी तन पाते।
तो किस तरह मदरसे जाते
यह कॉलेज में पढ़ा नहीं है
मोटर पर भी चढ़ा नहीं है।
पर मूरख न इसे कह देना।
बच्चों इससे शिक्षा लेना।
बड़ी बलि है इसकी छाती।
जो गंगा की धार बहाती।
जिसमे हैं हम नाव चलाते।
जिसमे हैं हम खूब नहाते।
बादल इसमें अड़ जाते हैं।
मनमाना जल बरसाते हैं।
जिससे होती खेती बारी।
खाते हम पूरी तरकारी।
दुश्मन इसे देख डर जाते।
बल का इसके पार न पाते।
पहरेदार हमारा है यह।
कहो न किसको प्यारा है यह।
घोर घटा सा खड़ा हुआ है।
महाबली सा अड़ा हुआ है।
सेवा करना इससे सीखो।
कभी न डरना इससे सीखो।