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हिसाब / अर्चना कुमारी

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दिल ठुनकता है
नींद से बोझल होकर
और दिमाग जागता रहता है
जाने किन किन गलियों में
दौड़ता भागता छुपता
कितने ही सवालों से
जबाबों का बीजगणित
मान लेने भर से हल नहीं होता
चर अचर संख्याओं के बीच
नहीं बनता कोई समीकरण
सांस सांस पर भारी
लम्हों का रिसाव
वक्त का खिंचाव
तमाम उम्र का हिसाब
हल होता होगा शायद
आख़िरी वक़्त में !