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हुई राह मुश्किल तो क्या कर चले / गौतम राजरिशी
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हुई राह मुश्किल तो क्या कर चले
क़दम-दर-क़दम हौसला कर चले
उबरते रहे हादसों से सदा
गिरे, फिर उठे, मुस्कुरा कर चले
लिखा ज़िंदगी पर फ़साना कभी
कभी मौत पर गुनगुना कर चले
खड़ा हूँ हमेशा से बन कर रदीफ़
वो ख़ुद को मगर काफ़िया कर चले
उन्हें रूठने की है आदत पड़ी
हमारी भी जिद थी, मना कर चले
बनाया, सजाया, सँवारा जिन्हें
वही लोग हमको मिटा कर चले
जो कमबख़्त होता था अपना कभी
उसी दिल को हम आपका कर चले
{द्विमासिक सुख़नवर, जुलाई-अगस्त 2010}