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हुजूम-ए-सय्यार्गां में रौशन दिया उसी का / कबीर अजमल

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हुजूम-ए-सय्यार्गां में रौशन दिया उसी का
फसील-ए-शब पर भी गुल खिलाए हुआ उसी का

उसी की शह पर तरफ तरफ रक्स-ए-मौज-ए-गिर्या
तमाम गिर्दाव-ए-खूँ पे पहरा भी था उसी का

उसी का लम्स-ए-गुदाज रौशन करे शब-ए-गम
हवा-ए-मस्त-ए-विसाल का सिलसिला उसी का

उसी के गम में धुआँ धुआँ चश्म-ए-रंग-ओ-नगमा
सो अक्स-जार-ए-खयाल भी मोजज़ा उसी का

उसी से ‘अजमल’ तमाम फस्ल-ए-गुबार-ए-सहरा
उदास आँखों में फिर भी रौशन दिया उसी का