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हुस्न-ए-शोख़-चश्म में नाम को वफ़ा नहीं / ताजवर नजीबाबादी
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हुस्न-ए-शोख़-चश्म में नाम को वफ़ा नहीं
दर्द-आफ़रीं नज़र दर्द-आश्ना नहीं
नंग-ए-आशिक़ी है वो नंग-ए-ज़िन्दगी है वो
जिस के दिल का आईना तेरा आईना नहीं
आह उस की बे-कसी तू न जिस के साथ हो
हाए उस की बन्दगी जिस का तू ख़ुदा नहीं
हैफ़ वो अलम-नसीब जिस का दर्द तू न हो
उफ़ वो दर्द-ए-ज़िन्दगी जिस की तू दवा नहीं
दोस्त या अज़ीज़ हैं ख़ुद-फ़रेबियों का नाम
आज आप के सिवा कोई आप का नहीं
अपने हुस्न को ज़रा तू मिरी नज़र से देख
दोस्त! शश-जहात में कुछ तिरे सिवा नहीं
बे-वफ़ा ख़ुदा से डर ताना-ए-वफ़ा न दे
'ताजवर' में और ऐब कुछ हों बे-वफ़ा नहीं