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हुस्न बाज़ार हुआ क्या कि हुनर ख़त्म हुआ / वसीम बरेलवी
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हुस्न बाज़ार हुआ क्या कि हुनर ख़त्म हुआ
आया पलको पे तो आँसू का सफ़र ख़त्म हुआ
उम्र भर तुझसे बिछड़ने की कसक ही न गयी ,
कौन कहता है की मुहब्बत का असर ख़त्म हुआ
नयी कालोनी में बच्चों की ज़िदे ले तो गईं ,
बाप दादा का बनाया हुआ घर ख़त्म हुआ
जा, हमेशा को मुझे छोड़ के जाने वाले ,
तुझ से हर लम्हा बिछड़ने का तो डर ख़त्म हुआ.