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हूँ यात्री / भैरवनाथ रिमाल कदम

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हूँ यात्री एउटा रुमल्ली हिंड्ने अँधेरी रातमा
हूँ यात्री एउटा कहानी लेख्ने जंगली पातमा

जिन्दगी बित्यो साहरा सधैं आँसु पो लिएर
उजाड रह्यो जीवन त्यसै सधैं दुखमा हिंडेर
म सामू कहिले किन हो किन मधुमास आएन

इच्छाको सागर पौडेर रहें सपनाको संसार
आज या भोलि छ पुग्नुपर्ने बाटो छ हजार
हरेक पल बिहानी हेर्थें तर बसन्त आएन