Last modified on 17 अक्टूबर 2013, at 15:14

हूंस / हरिमोहन सारस्वत

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:14, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

माटी रै धणी रो हेलो
अर चातकडै री तिरस देख
थ्यावस नीं राख सकूं म्हूं
बरफ दाईं जमणै री
ओळौ नीं,
बणन दे म्हानै
बिरखा री छांट,
माटी मांय रळतां
जकी
तिरस री पीड ल्यै बांट
काळजां ठण्ड बपराणो चांवूं
ठण्डो होवण स्यूं पैली..!