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हूबहू हिन ज़िंदगीअ जहिड़ो हुओ / एम. कमल

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हूबहू हिन ज़िंदगीअ जहिड़ो हुओ।
दोस्त जो रुख़ दुश्मनीअ जहिड़ो हुओ॥

हुन जो पोयां कपु हणी मुरिकी ॾिसणु।
कुहिने फट जी ताज़गीअ जहिड़ो हुओ॥

चूरु थियणो ई हुउसि कंहिंजे हथां।
सभ सां वहिंवारु आरसीअ जहिड़ो हुओ॥

हर फ़साने में मां मारियो ई वियुसि।
मुंहिंजो किरदार आदमीअ जहिड़ो हुओ॥

पंहिंजे पाछे भी थे छिरिकायो कमल।
शहरु ऊंदाहीं घिटीअ जहिड़ो हुओ॥