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हे अच्युत / प्रकाश मनु

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हे अच्युत...
हे हे अच्युत...हां अच्युत
संभालो अपनी गदा
और कसकर करो प्रहार
संभालो, हां संभालो गदा
उठाओ अपना चक्र अच्युत!

सामने हैं लोग
लोग जो कि भ्रम हैं, मिथ्या
लोग जो कि बहता हुआ गोंद है गोंददानी का/बुलबुला पानी का
लोग जो कि जिंदा भी हैं मरे हुए
इंतजार में है मुक्ति के लिए
वे लाइन में खड़े हैं
सामने है धुआं-झीना-झीना धुआं
आरती के धूप-दीपों का

-‘‘मैं मूरख खल कामी
मैं सेवक तुम स्वामी।’’

उठाओ
उठाओ तुम्हीं गदा
(तुम से बड़ा कौन है उद्धारकर्त्ता?)
धुन दो धुन
कि सब कुछ हो राख...अंगार...
बचे नहीं कुछ भी कहीं
न गेहूं न घुन
(बस, ध्यान रहे
चेले-चाटे जाएं छूट,
मक्खन मलाई उड़ाएं खूब!!)

संभालो, संभालो हे अच्युत
संभालो अपनी गदा
संभलकर करो वार!
दोनों आंखें बन्द।
तीसरी खुली आंख से करते संहार
देखना अच्छी तरह-
नहीं बचे कोई झुमरू कोई भजन
कोई रत्ती कोई राई-घास का तिनका तक-
लोग तो पहले से ही हैं मरे हुए
मन्दिरांे में दण्डवत हो
उतारते आरती
(संग-संग मैले चोकट कपड़ों की भभक!)
हे अच्युत
हे हे हे अच्युत...
(ये जीने लायक हैं भला-
बेमतलब
बे-इतिहास!)

जब तुम पास जाओगे
उन्हें यकीन नहीं आएगा प्रभु
कि वे सच में तुम्हें देख रहे हैं
तुम्हारा रौद्र रूप
उनकी आत्मा में उपजाएगा सन्देह
कि तुम इन्हें मारने आए हो या बचाने
मति भ्रम में
वे चीखें-चिल्लाएंगे-
हाय हाय अच्युत!
आह आह अच्युत!!
ओह ओह अच्युत!!!

बस यही होगा मौका
यही अवसर
टटोलना भुजदण्डों की ताकत
और अट्टहासना लगाकर जोर-
अट्टहासना जोर से
और हर श्रद्धा के साथ
एक गुरुतर प्रहार
जितने जोर की हंसी उतनी मार...
समीकरण यह बढ़िया है
शानदार!

मगर उससे भी शानदार होगा दृश्य
सड़कों गलियों मैदानों में
चीखते चिघाड़ते
हा हा हू हू हुंकारते लोग...
लोगों के आगे लोग...लोगांे के पीछे लोग...
जितने होंगे भागते लोग
उससे ज्यादा
तुम्हारे रथ की अराओं में दबे कुचले लोग
अराओं से
लिथड़ा मांस, रक्त...
बहाकर खून की नदी
सन जाएगी गदा (सन जाएगी बची-खुची पूरी की पूरी सदी!)
टपकेगा खून
तब पूरा होगा सपना तुम्हारा
पूरा महाभारत...!!!
क्यों अच्युत!

होगा फिर पट-परिवर्तन।
अभय मुद्रा में-
आओगे टी.वी. में-

हमने वही किया जो होना था/जो हम ही कर सकते हैं
विरोधी तो थे ही नकारा!
दुर्बल को खत्म करने के ऐसे ऐसे गुर हैं हमारे पास
कि आपको होगा यही अहसास!!
शक्तिशाली का हो राज्य
यही है धर्म, यही नीति...

(मगर जो तुम नहीं कहोगे
वह कहेगा
रक्तसनी गदा से टपकता लहूकृ
लहू बूंद-बूंद
जिससे खिंच आएगा खुद ब खुद
खून सना नक्शा भारत का!)
.........
........
..........

इसी में होगा नया धर्मग्रन्थ
नए युग का नया महाभारत
नए भय...
हे अच्युत, हे हे अच्युत!!
जब-जब होगी प्रलय
छोड़ देना अपनी नौका निश्चल
छोड़ देना तरणी
बच ही जाएंगे तुम्हारे कुछ खास चमचे!
मरेंगे जो मरने के लिए ही
हैं पैदा हुए
उन्हें तुम नहीं मारोगे तो कोई और...
कोई न कोई तो हरेगा उनके प्राण
देगा मुक्ति उन्हें
जो हैं बरसों से लाइन में लगे हुए!

हर बार लिखी जाएगी जब नई रामायण,
नया महाभारत
तो बीचोंबीच होगे तुम-केवल तुम
अच्युत!
विराटाकार रूप में-
अभय मुद्रा
कमल कर उठाए!

तो फिर देर क्यों?
नाटक की पूरी है तैयारी...
पात्र अनन्त बेहिसाब-
नायक अकेले तुम्हीं
मंच यह धरती
संभालो गदा
उठाओ चक्र अच्युत!
हे अच्युत
हे हे हे अच्युत
हां हां हां अच्युत!!!