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हे चित्रकार / भास्कर चौधुरी

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हे चित्रकार
दीवारों पर बनाया तुमने चित्र
चिड़यों का, मेंढक-मेंढकी के
हिरण, खरगोश, बगूले, मछलियां और मोर
तुमने बनाए चित्र
बादलों के पौधे-घास और चीटियाँ
हाथी, कुकुरमुत्ते और गुलाब
हे चित्रकार
तुमने बिखेरे रंग
दिया आकार तो लगा जैसे -
उड़ने लगीं चिड़ियां पंख पसार
नाचने लगे मोर
टर्राने लगे मेंढक-मेंढकी
दौड़ने लगी बड़ी-बड़ी आँखों वाली हिरणी
घास पर चीटियाँ मदमस्त
बटोरने लगीं उनके खाने के सामान
हे चित्रकार
सोचता हूँ
जब देखेंगे बच्चे
जिन्होंने रखा होगा अभी सिर्फ कुछ कदम
अपनी माँ की पिता की गोद से उतरकर धरती पर
डोलते हुए पांवों से जब
पहुँचेगें दीवारों के पास तो छूकर उंगलियों के पोरों से
पंखों को चिड़ियों के
उजला कर देंगे रंग थोड़ा और
जान डाल देंगे कि मानों उड़ने लगेंगी चिड़ियाँ
बच्चों के संग,
टर्रायेंगे मेंढक-मेंढकी टर्र-टर्र
नाचने लगेंगे मोर
चौकन्ने हो जाएंगे खरगोश के कान
हाथी दिखाकर दात और उठाकर सूंड़ आसमान की
ओर
बच्चों को भिंगा देगा सर से पांव तक
घास से निकलकर चीटियाँ
खाना हाथों में दबाए
हँसने लगेंगी फिक-फिक
शुरु हो जाएगा बादलों का शोर और बूंदों की
टिप-टिप
बगूलों और मछलियों की आँख मिचौली
कि हे चित्रकार देखो -
ये जो सूरजमुखी तुमने बनाया है
खुश हो-होकर बजा रहा है तालियाँ
बच्चों के संग हो रहा है लोट-पोट....