भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हे दिवाकर! / कविता मालवीय

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:59, 3 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता मालवीय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे दिवाकर!
तुममें ऐसा क्या है यार
निखरते हो
तो महफ़िल की वाहवाही समेट लेते हो
डूबते हो
तो आहों से जग को लपेट लेते हो
तुम कभी
उच्चतर भावना से ग्रस्त नहीं होते!
कृष्ण के बचपन में,
दीवानों (कवि) की जमात में
सुबहो शाम शामिल रहने से पस्त नहीं होते
शायर हो क्या?
जो मुश्किलात (चंद्रग्रहण) में भी
दर्द की हर अंगडाई का
फ़साना बना देते हो
दंगाई हो क्या?
जो अच्छे भले
शांत माहौल में आग लगा देते हो?
तुममें ऐसा क्या है यार