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हे मेघ, अपने शरीर को पुष्‍प-वर्षी बना / कालिदास

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तत्र स्‍कन्‍दं नियतवसतिं पुष्‍पमेधीकृतात्‍मा
     पुष्‍पासारै: स्रपयतु भवान्‍व्‍योमगग्‍ड़ाजलाद्रैः।
रक्षाहेतोर्नवशशिभृता वासवीनां चमूना-
     मत्‍यादित्‍यं हुतवहमुखे संभृतं तद्धि तेज:।।

हे मेघ, अपने शरीर को पुष्‍प-वर्षी बनाकर
आकाशगंगा के जल में भीगे हुए फूलों की
बौछारों से वहाँ देवगिरि पर सदा बसनेवाले
स्‍कन्‍द को तुम स्‍नान कराना। नवीन चन्‍द्रमा
मस्‍तक पर धारण करनेवाले भगवान शिव
ने देवसेनाओं की रक्षा के लिए सूर्य से भी
अधिक जिस तेज को अग्नि के मुख में
क्रमश: संचित किया था, वही स्‍कन्‍द है।