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हे मेघ, वह मेरी पत्‍नी या तो देवताओं की / कालिदास

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आलोके ते निपतति पुरा सा वलिव्‍याकुला वा
     मत्‍सादृश्‍य विरहतनु वा भावगम्‍यं लिखन्‍ती।
पृच्‍छन्‍ती वा मधुरवचनां सारिकां पञ्जरस्‍थां
     कच्चिद्भर्तु: स्‍म‍रसि रसिके! त्‍वं हि तस्‍य प्रियेति।।

हे मेघ, वह मेरी पत्‍नी या तो देवताओं की
पूजा में लगी हुई दिखाई पड़ेगी, या विरह में
क्षीण मेरी आकृति का अपने मनोभावों के
अनुसार चित्र लिखती होगी, या पिंजड़े की
मैना से मीठे स्‍वर में पूछती होगी - 'ओ
रसिया, तुझे भी क्‍या वे स्‍वामी याद आते
हैं? तू तो उनकी दुलारी थी।'