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हे हर! वरद! बड़द चढ़ि आब पधारिअ है / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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हे हर ! वरद ! बड़द चढ़ि आब पधारिअ है
भेल सदाशिव! हे हर दास उधारिअ है।
लोचन भरि - भरि आयल, मन भरिआयल हे
बिसरल सरल सुगम पथ, दृग पथरायल हे।
आसन हम न लगाओल आश न त्यागल हे
केहन अभागल भाग, सुदिन तजि भागल हे।
वेदन करब निवेदन वेद न जानिअ हे
अह हर! हरब परभव, मन अनुमानिअ हे।
हमरा खल छलि राखल, चाखल आसव हे,
आ सब पाप पछाड़ि कहैछ गरासब हे।
तारल अधम अनेक, किनार उतारल हे,
बारल ज्ञानक दीपक, परसि उवारल हे।
अमर सुयश पद गाओल, अलख जगाओल हे,
रमल शिवक पद भरमल मन, सुख पाओल हे।