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हैंगरमे टाँगल कोट / धीरेन्द्र

चेतनाक हैंगरमे टाँगल अछि बहुत राश स्मृतिक कोट !
पहिल कोट देखैत छी
तँ हमरा एक गोट झखुरल वृद्धक चेहरा देखाइछ;
मने एक गोट चिर्री चिर्री भए गेल, ऊनी कोट हो !!
छैहो किछु ओहने सन-
अरमानक कपड़ा फाटि गेल कहिया ने,
धैरज केर सीअनि उघरि गेल कहिया ने,
जीवन जे रफ्फू पर चलि रहल
आ आर थीक की ?
एहि कोटमे उझकैत चेहराकें जनैत छी
ई हमर बाप थिकाह !
दोसर कोट हिलि रहल
शार्क स्कीन जहाँ
ममताक कोमलता लेने ई नाचि रहल अछि
ताकि रहल बदहवाश एक गोट चेहरा
चेहरा जे नारीक थिक
जकर बच्चा सभ दुखित छै
जकर पौत्र गड़ा गेल गाड़ामे
जकर बेटा दोसर देश गुलाम अछि
जकर एक गोट बेटा फौजी बनि गेल
आ, जे सोचैत रहैछ हरदम जे फुलबारी ओकर उजरि गेल।
जनैत छी खूब हिनका-
ई हमर माइ थिकीह-बताहि भए गेलीह अछि।
हिलि रहल अछि तेसर कोट-
फौजी बिल्ला लगऔने कहि रहला ओ-
प्रणाम भाइ ! जा रहल छी लाम पर
तंग अब नहि करब !
डॉक्टरेट अहाँ जरूरे लए ली,
अहाँकें शपथ हमर !!
हम तँ कुल बदलि लेल, आब हम सैनिक छी !!
परिस्थितिक बसात
एहि हैंगरमे टांगल कोटकें हिला दैत अछि।
हम ठहाका लगबैत छी,
खूब गप्प हँकैत छी
मित्र लोकनिसँ झगड़ा करए लगैत छी।
आ नव-नव फिलॉसफी छाँटए लगैत छी
के बुझि सकत जे
ई सभ हमर चेतनाक हैंगरमे टाँगल अछि
बहुत रास स्मृतिक कोट ?
आ’ ओकरा बिसरि नहि पबैत छी
ओना बिसरए चाहैत छी-
चाहक पियालीमे
फिलॉस्फीक मौनीमे
ओकरा डुबबए चाहैत छी
मुदा ओ अछि जे हिलि रहल
हिलि रहल
चेतनाक हैंगरमे टँगल-टँगल !