Last modified on 5 जून 2016, at 07:56

हैं हवाएँ भी पशेमां / रजनी मोरवाल

शख़्स है सारे परेशां शहर में मेरे।

गुम हुई लब से हँसी
बेज़ार है आँखें,
सब यहाँ ओढ़े लबादा
दे रहे धोखे,

कौन अब पकड़े गिरेबां शहर में मेरे।

सज रहे बाज़ार
जिस्मों की कंगारों पर,
बिक रही इज़्ज़त
सफलता के किनारों पर,

है हवाएँ भी पशेमां शहर में मेरे।

दुश्मनी के छोर
साहिल पर हुए चौड़े,
नफ़रतों की आँधियों ने
रुख नहीं मोड़े,

ज़हर में डूबी फ़िजा है शहर में मेरे।