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है दरख़्तों की शायरी जंगल / वर्षा सिंह

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है दरख़्तों की शायरी जंगल ।
धूप-छाया की डायरी जंगल ।

हो न जंगल तो क्या करे कोई
चाँद-सूरज की रोशनी जंगल ।

बस्तियों से निकल के देखो तो
ज़िन्दगी की है ताज़गी जंगल ।

फूल, खुशबू, नदी की, झरनों की
पर्वतों की है बाँसुरी जंगल ।

दिल से पूछो ज़रा परिंदों के
ख़ुद फ़रिश्ता है, ख़ुद परी जंगल ।

नाम ‘वर्षा’ बदल भी जाए तो
यूँ न बदलेगा ये कभी जंगल ।