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है पेशो-पस कि तेरी आरज़ू करें न करें / कांतिमोहन 'सोज़'

है पेशो-पस कि तेरी आरज़ू करें न करें I
रसाई की भी कोई जुस्तजू करें न करें II

कोई बताए शबे-ग़म की सुब्ह है कि नहीं,
चराग़े-ज़ीस्त को अब पुरलहू करें न करें I

कभी ख़मोश कभी शोख़ तानाज़न है कभी,
इस आईने से भी अब गुफ़्तगू करें न करें I

सलाह शेख़ की मानें कि दिल की बात सुनें,
मुरादे-सोह्बते-जामो-सबू करें न करें I

बड़ी शरीर है उसको बना न दे लैला
सबा से तज़्क़िर-ए-मुश्को-बू करें न करें II