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है बात वक़्त वक़्त की चलने की शर्त है / गणेश बिहारी 'तर्ज़'

है बात वक़्त वक़्त की चलने की शर्त है
साया कभी तो क़द के बराबर भी आएगा

ऐसी तो कोई बात तसव्वुर में भी न थी
कोई ख़्याल आपसे हट कर भी आएगा

मैं अपनी धुन में आग लगाता चला गया
सोचा न था कि ज़द में मेरा घर भी आएगा