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है शरारा ये मुहब्बत का, हवा मत देना / कविता विकास

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है शरारा ये मुहब्बत का, हवा मत देना
जो सुलग ही गया दिल में तो दबा मत देना

जिनसे तहज़ीबों की सौगात मिली है तुमको
उनसे ही मान तुम्हारा है, गँवा मत देना

बाद मुद्दत के कहीं और ये दिल उलझा है
सो चुके ख़्वाबों को तुम फिर–से जगा मत देना

मेरे हमसाज़ करम इतना ही करना मुझपर
रहगुज़र में मिलें गर नज़रें फिरा मत देना

रक्खा है सबसे छुपा के तुम्हें अपने दिल में
कोई कितना भी कहे इसका पता मत देना

ज़िंदगी हमने गुज़ारी है ज़हर पी–पी कर
मरने का वक़्त जब आये तो जिला मत देना

लो तेरी हो गई दुनिया से अदावत करके
आग पर चलना पड़े तो भी दगा मत देना

तेरी यादें ही सबब हैं मेरे जीने का अब
खूबसूरत–से पलों को तू भुला मत देना