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होता मेरे घर भी बड़ा सामान वग़ैरह / अनीस अंसारी

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होता मेरे घर भी बड़ा सामान वग़ैरह
चस्के में न पड़ता अगर ईमान वग़ैरह

मयख़ाने में साक़ी का करम आम है सब पर
लब-बन्द हैं बस चन्द मुसलमान वग़ैरह

थाने में रक़ीबों की रपट लिखते हैं फ़ौरन
आशिक़ किया जाता है परेशान वग़ैरह

दरयाफ्त नई दुनिया सितारे में हुई है
शायद कि वहाँ रहते हैं इन्सान वग़ैरह

क़ामत से बड़ी मूर्ति फ़नकार ने ढाली
बौने की ज़रा ऊंची हुई शानान वग़ैरह

ऐ अर्शनशीं ख़ाकमकीं रूह को देखा?
मिल जाती हैं मिट्टी में यह सब शान वग़ैरह

फ़ुरसत हो अमीरों से तो मलका मुझे देखे
लगती है फ़क़ीरों से कुछ अन्जान वग़ैरह