भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"होरी खेलत हैं गिरधारी / मीराबाई" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[Category:मीराबाई]]
+
{{KKGlobal}}
[[Category:कविताएँ]]
+
{{KKRachna
 +
|रचनाकार= मीराबाई  
 +
}}{{KKAnthologyHoli}}
 
[[Category:पद]]
 
[[Category:पद]]
{{KKSandarbh
 
|लेखक=मीराबाई
 
|पुस्तक=
 
|प्रकाशक=
 
|वर्ष=
 
|पृष्ठ=
 
}}
 
 
 
होरी खेलत हैं गिरधारी।<br>
 
होरी खेलत हैं गिरधारी।<br>
 
मुरली चंग बजत डफ न्यारो।<br>
 
मुरली चंग बजत डफ न्यारो।<br>

19:26, 15 मार्च 2011 के समय का अवतरण

होरी खेलत हैं गिरधारी।
मुरली चंग बजत डफ न्यारो।
संग जुबती ब्रजनारी।।
चंदन केसर छिड़कत मोहन
अपने हाथ बिहारी।
भरि भरि मूठ गुलाल लाल संग
स्यामा प्राण पियारी।
गावत चार धमार राग तहं
दै दै कल करतारी।।
फाग जु खेलत रसिक सांवरो
बाढ्यौ रस ब्रज भारी।
मीरा कूं प्रभु गिरधर मिलिया
मोहनलाल बिहारी।।