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होली खेलि लेहू (तर्ज होली) / कृष्णदेव प्रसाद

होली खेलि लेहू
होली खेलि लेहू छयल छबीली ॥1॥

चहकि चहकि उठे मुदित कोइलिया
तान लगावे सुरीली,
पोह फटैते फिनु सांझ सबेरे
कलरव घुनि हरखीली,
जगत करे सब हिलमीली ॥2॥

बयन अमिय रस तनिक पिलावह
नयन मिलावअ रसीली,
बदन बदन मोर कसक मिटावह
अंग जुढ़ावअ रंगीली,
सुजौजन मद गरबीली ॥3॥

जीबन फिनु फिनु आवत नाहीं
नयन न रहे सकुचीली,
रहइ न बहु दिन मुँहमा से उँह जा
छमक न रहइ लचीली,
समुझि तजअ लाजलजीली ॥4॥