Last modified on 18 मार्च 2011, at 12:01

होली डफ की / भारतेंदु हरिश्चंद्र

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:01, 18 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी।
इन चोरन मेरो सरबस लूट्यौ मन लीनौ जोरा-जोरी।
छोड़ि दे ईकि बंद चोलिया पकरै चोर हम अपनौ री।
‘हरीचंद’ इन दोउन मेरी नाहक कीनी चित चोरी री।

देखो बहियाँ मुरक मेरी ऐसी करी बरजोरी।
औचक आय धरी पाछे तें लोकलाज सब छोरी।
छीन झपट चटपट मोरी गागर मलि दीनी मुख रोरी।
नहिं मानत कछु बात हमारी कंचुकि को बँद खोरी।
एई रस सदा रसि को रहिओ ‘हरीचंद’ यह जोरी।