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होली / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

आज घर-घर में होली जली।
लिपे हैं स्वच्छ सुधर आँगन,
टिकुलियों से सजता आँगन।
पुरे हैं रोली से सब चौक,
सात रंगों की रंगत भली॥
खेत के पूरे हैं अरमान।
आ गये बालों में जौ धान।
होलिका में अर्पित होते॥
प्रकृती की गोदी फुलीफली॥
गा रहे होली और धमार।
गीत स्वर लाते नई बहार।
आँख में लिए गुलाबी रंग,
आज मदमाती टोली चली॥
चला है पिचकारी का रंग,
मचलती मन में नई उमंग।
कुंकुमे छूट चले बहू रंग,
कीच मच चली गाँव की गली॥