भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

होश तेॅ कम्मे जोश अधिक छै / कैलाश झा ‘किंकर’

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:59, 25 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश झा ‘किंकर’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

होश तेॅ कम्मे जोश अधिक छै।
हमरे सब मेॅ दोष अधिक छै।।

कथी लेॅ नेता जी केॅ कहबै,
जनता ही मदहोश अधिक छै।

अप्पन जाति केॅ कुर्सी मिललै,
चिन्ता नै संतोष अधिक छै।

कछुआ जैसन छै विकास दर,
हारै अब खरगोश अधिक छै।

प्रेम भाव तेॅ मोरंग गेलै,
सबकेॅ सब पर रोष अधिक छै।

गाल बजाबै चौक-चौक पर,
जीतै कम जयघोष अधिक छै।