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"हो के यूँ पत्थर जो हम उनके हवाले जाएँगे / जंगवीर सिंंह 'राकेश'" के अवतरणों में अंतर
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हो के यूँ पत्थर जो हम उनके हवाले जाएँगे | हो के यूँ पत्थर जो हम उनके हवाले जाएँगे | ||
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अब कहाँ सासों के ये तूफ़ाँ संभाले जाएँगे | अब कहाँ सासों के ये तूफ़ाँ संभाले जाएँगे | ||
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अश्क आँखों के न अब हमसे संभाले जाएँगे | अश्क आँखों के न अब हमसे संभाले जाएँगे | ||
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प्यार के पंछी न फिर से दिल में पाले जाएँगे। | प्यार के पंछी न फिर से दिल में पाले जाएँगे। | ||
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16:30, 28 मार्च 2019 के समय का अवतरण
हो के यूँ पत्थर जो हम उनके हवाले जाएँगे
या'नी क्या अब पत्थरों से दिल निकाले जाएँगे
इश्क़ की आँधी चली तो आग जिस्मों में लगी
अब कहाँ सासों के ये तूफ़ाँ संभाले जाएँगे
ज़र्रा - ज़र्रा मैं यूँ कटता हूँ तो बहता हूँ कभी
एक - दिन ये रिश्ते-नाते सब बहा ले जाएँगे
लहरों में अफवाह है सागर अब तबाह हो जाएगा
मैं समझता हूँ सफ़ीने अब निकाले जाएँगे
इस क़दर ये इश्क़ ये चाहत ये लम्हे चुभते हैं
अश्क आँखों के न अब हमसे संभाले जाएँगे
दर्द था, ग़म था, लहू था इश्क़ की आँखों में तब
प्यार के पंछी न फिर से दिल में पाले जाएँगे।