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"हो गई है पीर पर्वत / दुष्यंत कुमार" के अवतरणों में अंतर

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हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,<br>इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।<br><br><br>आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,<br><span class=""></span>शर्त थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।<br><br><br>हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,<span class=""></span><br><span class=""></span>हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।<br><br><br>सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,<br><span class=""></span>मेरी कोश‍िश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।<br><br><br>मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,<br>हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
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हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
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इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
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आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
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मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
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हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए
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20:00, 10 जुलाई 2013 का अवतरण

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए

आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी
शर्त थी लेकिन कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए

हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए