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"हो गया अपना इलाहाबाद, पेरिस,अबू धाबी/जय कृष्ण राय तुषार" के अवतरणों में अंतर
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('शरद में ठिठुरा हुआ मौसम लगा होने गुलाबी | हो गया अपन...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
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ठिठुरा हुआ मौसम | ठिठुरा हुआ मौसम | ||
लगा होने गुलाबी | | लगा होने गुलाबी | | ||
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ये परिन्दे | ये परिन्दे | ||
झील ,खेतों में | झील ,खेतों में | ||
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हमें मिलने लगे , | हमें मिलने लगे , | ||
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चुग नहीं | चुग नहीं | ||
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पाते अभी दानें | पाते अभी दानें | ||
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यही इनकी खराबी | | यही इनकी खराबी | | ||
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स्वप्न देखें | स्वप्न देखें | ||
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फागुनी - | फागुनी - | ||
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ऑंखें गुलालों के , | ऑंखें गुलालों के , | ||
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लौट आये , | लौट आये , | ||
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के रिसालों के , | के रिसालों के , | ||
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डाकिये | डाकिये | ||
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पढ़ने लगे हैं खत जबाबी | | पढ़ने लगे हैं खत जबाबी | | ||
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खनखनाती | खनखनाती | ||
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चूड़ियाँ जैसे | चूड़ियाँ जैसे | ||
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बजें संतूर , | बजें संतूर , | ||
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देखते मजदूर | देखते मजदूर | ||
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सुबह | सुबह | ||
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− | नरगिस, दोपहर | + | लगने लगी परवीन बाबी |</poem> |
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10:53, 7 फ़रवरी 2012 के समय का अवतरण
शरद में
ठिठुरा हुआ मौसम
लगा होने गुलाबी |
हो गया
अपना इलाहाबाद
पेरिस ,अबू धाबी |
देह से
उतरे गुलाबी -
कत्थई ,नीले पुलोवर ,
गुनगुनाने लगे
घंटों तक
घरों के बन्द शावर ,
लाँन में
आराम कुर्सी पर
हुए ये दिन किताबी |
घोंसलों से
निकल आये
पाँव से चलने लगे ,
ये परिन्दे
झील ,खेतों में
हमें मिलने लगे ,
चुग नहीं
पाते अभी दानें
यही इनकी खराबी |
स्वप्न देखें
फागुनी -
ऑंखें गुलालों के ,
लौट आये ,
दिन मोहब्बत
के रिसालों के ,
डाकिये
फिर खोलकर
पढ़ने लगे हैं खत जबाबी |
खनखनाती
चूड़ियाँ जैसे
बजें संतूर ,
सहचरी को
कनखियों से
देखते मजदूर
सुबह
नरगिस, दोपहर
लगने लगी परवीन बाबी |