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हो गया अपना इलाहाबाद, पेरिस,अबू धाबी/जय कृष्ण राय तुषार

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शरद में ठिठुरा हुआ मौसम लगा होने गुलाबी | हो गया अपना इलाहाबाद पेरिस ,अबू धाबी |

देह से उतरे गुलाबी - कत्थई ,नीले पुलोवर , गुनगुनाने लगे घंटों तक घरों के बन्द शावर , लाँन में आराम कुर्सी पर हुए ये दिन किताबी |

घोंसलों से निकल आये पाँव से चलने लगे , ये परिन्दे झील ,खेतों में

हमें मिलने लगे ,

चुग नहीं

पाते अभी दानें

यही इनकी खराबी |


स्वप्न देखें

फागुनी -

ऑंखें गुलालों के ,

लौट आये ,

दिन मोहब्बत

के रिसालों के ,

डाकिये

फिर खोलकर

पढ़ने लगे हैं खत जबाबी |


खनखनाती

चूड़ियाँ जैसे

बजें संतूर ,

सहचरी को

कनखियों से

देखते मजदूर

सुबह

नरगिस, दोपहर

लगने लगी परवीन बाबी |