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हौं तो दासी नित्य तिहारी / हनुमानप्रसाद पोद्दार

हौं तो दासी नित्य तिहारी।
प्राननाथ जीवनधन मेरे, हौं तुम पै बलिहारी॥
 चाहैं तुम अति प्रेम करौ, तन-मन सौं मोहि अपना‌औ।
 चाहैं द्रोह करौ, त्रासौ, दुख दे‌इ मोहि छिटका‌औ॥
 तुहरौ सुख ही है मेरौ सुख, आन न कछु सुख जानौं।
 जो तुम सुखी हो‌उ मो दुख में, अनुपम सुख हौं मानौं॥
 सुख भोगौं तुम्हरे सुख कारन, और न कछु मन मेरे।
 तुमहि सुखी नित देखन चाहौं निस-दिन साँझ-सबेरे॥
 तुमहि सुखी देखन हित हौं निज तन-मन कौं सुख देन्नँ।
 तुमहि समरपन करि अपने कौं नित तव रुचि कौं सेन्नँ॥
 तुम मोहि ‘प्रानेस्वरि’, ‘हृदयेस्वरि’, ‘कांता’ कहि सचु पावौ।
 यातैं हौं स्वीकार करौं सब, जद्यपि मन सकुचावौं॥