भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हौसला / संजय मिश्रा 'शौक'

Kavita Kosh से
Alka sarwat mishra (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:20, 20 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna}} रचनाकार=संजय मिश्रा 'शौक' संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> मेरी शिकस्त…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकार=संजय मिश्रा 'शौक' संग्रह= }}



मेरी शिकस्त
 मेरा हौसला बढाती है
बहुत हसीन है फिर भी उम्मीद जीने की
जो मेरा साथ निभाती है साए की मानिंद
मगर ये साया भी तो साथ छोड़ देता है
कभी-कभी यही उम्मीद का दिया इकदम
जला तो रहता है लेकिन जिया नहीं मिलती
तो क्या ये सब भी इसी ज़िंदगी का हिस्सा है?
शिकस्त खा के मैं खुद को संभाल लेता हूँ
मैं अपनी फिक्र के सब ज़ाविए बदलता हूँ
मैं जानता हूँ मेरे अहद की ये जंगे-अज़ीम
गरीब ज़हनों की और भूके पेट लोगों की
सदा से चलती आई है मगर इस बार
शिकस्त खा के भी खुद को तवाना रक्खे है
इसे समेटना है अपने आप को फिर से
फिर एक बार नई जंग जीतने के लिए
तो इस शिकस्त का मातम नहीं करूंगा मैं !!!!