भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हौ तूं भय हारणि दुःख विपति विदारिणी माँ / अचल कवि (अच्युतानंद)

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हौ तूं भय हारणि दुःख विपति विदारिणी माँ,
तूही जगतारिणी तीनि लोक प्रतिपारैगो।
अतल वितल तलातल रसातल पताल वारि,
कच्छप पृष्ठ धरणि तूही निरवारैगो।
जहाँ-जहाँ मंदर समुंदर है जहाँन माह,
तहाँ-तहाँ माता नाम तैरोई पुकारैगो।
कवि अचल आय सरन निश्चल ह्नै करहु मगन,
तू ना उबारै तारा कौन महि उबारैगो।