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ह्रृदय भरिको अग्नि जलन / बद्रीप्रसाद बढू

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पँखेटा मेरा यी फटफट गरी उँड्दछ मन
पुगूँ टाढा टाढा हिमशिखरको माथि सलल
लिई अञ्जूलीमा हिमशिखरकै शीतल जल
चिस्याऊँ झैं लाग्यो ह्रृदय भरिको अग्नि जलन।।१।।