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कैमरे के सम्मुख / मालचंद तिवाड़ी

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कोई सी भी तारीख
जैसे कि २० जून १९८९
मैंने खींची थी तुम्हारी तस्वीर
हँसती हुई की
हँसी ऐसी थी वह कि जैसे हाथ से छूट गिरा हो
काँसे का थाल !

क्या तुम्हें याद है
वह बात
कही थी जो मैने
तुम्हें हँसाने के निमित्त !

हँसती तो अब भी होंगी तुम
क्योंकि मैं कहे जा रहा हूं वही बात
बिसराए बैठा
अपनी आँखों बहता अश्रु-धार
सुनो !
एकबात फिर से तो देखो
उसी दिन की तर्ज पर
इस कैमरे के सम्मुख !

अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा