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रक्त की कथा मत कहो / परिचय दास

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यायावर-सा खोज रहा जिसे मैं
कब तक ऐसे ही बहती रहेगी नदी शांत नीरव हँसली की तरह कटावदार
दिन का प्रथम प्रकाश भी नहीं आता इस घर में
जहाँ से मैं निकला हूँ, अभी-अभी
पहाड़ी की चोटी से सरसराती हवा का टुकड़ा घुस जाता है
गाइड बुक में, जिसमें संस्कृति का मानचित्र है
रिस्ते-रिस्ते जब सुगंधित हो उठे कवि के घाव
छोड़ दो मुझे पहले, जलाशय में अपने अंतःप्रागण में
फिर नदी में
तिरस्कृत कचरे के तिनके और पत्ते गलकर खाद बन जाते हैं
हरी चिनार की शीतलता जली, अब कहाँ बैठेंगे
सूर्य अंगारे बरसा रहा था रास्ते में पर देर हो रही थी मुझे
अभी कहाँ हो तुम, हमने कुरुक्षेत्र उगाया है
हर रिश्ते में, विज्ञापन कहता है, मैं नहीं
ऋषि के कंठ में मृत सर्प आरोपित किया, तभी से अभिशप्त हूँ
प्रारंभ में अनल-शिखा का लघु स्फुलिंग था मैं जाज्वल्यमान
मद्धम अंधकार में झरोखे से झाँक रहा हूँ सृष्टि को निहारता
पेट के लिए वस्त्र के लिए, बर्फीली पहाड़ियों में, अग्नि ज्वालाओं में
रक्त की कथा न कहो, कोई रसभरी बात छेड़ो
स्मृति का विश्वास आज भी बह रहा है प्रेतकल्प जहाज की तरह
सज्जित मंच पर रात्री जादूगरनी आई शानदार अलखल्ला पहनकर
प्रकृति के मंच पर
पूर्ण चंद्र ने फैलाया अपना मायाजाल पृथ्वी के अंगों पर
जादूगरनी गृहकार्य करने कुएँ पर आती है : मैंने कभी
एक भी शब्द उसका सुना नहीं
कक्षा में जलता दीपवृक्ष फर्श पर पड़ा मोरपंख
लोरियों के मधुर मधु में निजमन को घोलकर
कविता चुपचाप खड़ी रही
पीत, नील व अरुणाभा से भरी
गाँव के मंदिर में पूर्वा फाल्गुनी को होने वाला त्योहार है !