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कौन हो तुम ? / महेन्द्र भटनागर

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कौन हो तुम, चिर-प्रतीक्षा-रत
सजग, आधी अँधेरी रात में ?

उड़ रहे हैं घन तिमिर के
सृष्टि के इस छोर से उस छोर तक,
मूक इस वातावरण को
देखते नभ के सितारे एकटक,

कौन हो तुम, जागतीं जो इन
सितारों के घने संघात में ?

जल रहा यह दीप किसका,
ज्योति अभिनव ले कुटी के द्वार पर,
पंथ पर आलोक अपना
दूर तक बिखरा रहा विस्तार भर,

कौन है यह दीप ? जलता जो
अकेला, तीव्र गतिमय वात में ?

कर रहा है आज कोई
बार-बार प्रहार मन की बीन पर,
स्नेह काले लोचनों से
युग-कपोलों पर रहा रह-रह बिखर,

कौन-सी ऐसी व्यथा है,
रात में जगते हुए जलजात में ?