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हम जे एन यू में पढ़े हुए लोग / पराग पावन

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हम जे एन यू में पढ़े हुए लोग
पत्थर के विरुद्ध चक्की की वक़ालत करते लोग
छद्म रौशनी में अन्धेरों की शिनाख़्त करते हुए लोग
इस सदी में गाय को माँसाहारी साबित करते हुए लोग
हम जे एन यू में पढ़े हुए लोग ।

हम जे एन यू में पढ़े हुए लोग
जब मछुआरा बने तो हमने याद रक्खा
छावा चराती माँ-मछली को नहीं मारना कभी
भले ही, भूखे गुज़र जाए रात

हम जे एन यू में पढ़े हुए लोग
जब गडेरिया बने तो हमने याद रक्खा
अपनी लग्गी से सितारे तोड़ने का कोई अर्थ नहीं
भेड़ें जब भी खाएँगी हरे पत्ते ही खाएँगी

हम जे एन यू में पढ़े हुए लोग
जब इत्रफ़रोश बने तो भूले नहीं
कि धरती की गमकती गन्ध के आगे
कितना फीका है ग्लोबल कम्पनी का सबसे महँगा इत्र

हम जहाँ भी गए
पूछा गया हमसे —
दो और दो होता है कितना
हमने कहा —
गणित में बोलूँ
कि राजनीति में बोलूँ
कि अर्थशास्त्र में बोलूँ
जीवन की भाषा में भी
बता सकते हैं हम दो और दो का योग
हमें सनकी कहा गया, पागल कहा गया
पर हम बड़ी शिद्दत से महसूस करते रहे
कि एक ही नहीं होता — दो और दो का योग
जीवन में और गणित में और राजनीति में ।

हम जे एन यू में पढ़े हुए लोग
जहाँ भी गए
पूछा गया हमसे —
क्या रिश्ता है हमारा बाबर से
हमने कहा — इतिहास नहीं होता
सिर्फ़ घटनाएँ होती हैं
और संस्कृतियों-सभ्यताओं का विस्थापन भी
एक स्वाभाविक घटना है
उनकी निगाह में मेरे जवाब से
गद्दारी की गन्ध उठती है
हमारे जवाब के मद्देनज़र हमें विधर्मी कहा गया ।

हमसे मुल्क में और मुल्क के बाहर
तिरंगे के बारे में पूछा गया
सरहद पर शहीद सैनिक के बारे में पूछा गया
हमने कहा —
गोलियाँ खेतों में भी उगती हैं —
सल्फ़ास की गोलियाँ
और देश कोई पालतू परिंन्दा नहीं
जो आपकी रटायी ज़बान दुहराएगा
जो आपकी व्यक्तिगत मिल्कियत है ।

वह शहीद मेरा दोस्त था
आपकी राजनीति से बाहर का दोस्त
इस कविता की परिधि से बाहर का दोस्त
ईश्वर-अल्लाह के अनस्तित्व की तरह
सचमुच का दोस्त
किसानी और मजूरी से डरकर
उसने चुनी थी वह ज़िन्दगी …
हमारी बात बीच में ही काटकर
हमारे गिरेबाँ तक पहुँची उनकी मुट्ठी ने बताया
कि हम तो पुश्तैनी देशद्रोही हैं ।

उन्होंने कहा — सूरज लाल नहीं है
हमने कहा — बहस करेंगे
उन्होंने कहा — आसमान नीला नहीं है
हमने कहा — बहस करेंगे
उन्होंने कहा — चाँद दागदार नहीं है
आमन्त्रित स्वर में कहा हमने — बहस करेंगे ।

हम जे एन यू में पढ़ चुके लोग
शब्द को ब्रह्म नहीं मानते थे
पर हमारा अपराजेय यक़ीन था शब्दों पर
हममें से कोई नाजिम हिक़मत नहीं था
पर हम हमेशा सोचते थे कि
‘बहुत सारे रहस्य
जो दुनिया को अभी जानने हैं
इन शब्दों में थरथरा रहे हैं ।’