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101 / हीर / वारिस शाह

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मलकी गल सुनापवदी चूचके नूं लोक बहुत दिंदे बद दुआ मियां
बारां बरस महीं उस चारियां सी नहीं कीती सू चूं चरां मियां
हक खोह के चाए जवाब दिता महीं छड के घरां नूं जाह मियां
पैरीं लग के जाह मना ओहनूं मत पवी फकीर दी आह मियां
वारस शाह फकीर ने चुप वटी ओहदी चुप ही देगी रूढ़ा मियां

शब्दार्थ
<references/>