भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

106 / हीर / वारिस शाह

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:39, 31 मार्च 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वारिस शाह |अनुवादक= |संग्रह=हीर / व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रांझा हीर दी मां दे लग आखे छेड़ मझियां झल नूं आंवदा ए
मंगू वाड़ दिता विच झांगड़ी<ref>पेड़ों का झुंड</ref> दे आप नहायके रब्ब धयांवदा ए
हीर सतुआं दा घरों घोल छन्ना देखो रिज़क रंझेटे दा आंवदा ए
मेरा मरन जीउण तेरे नाल मियां सुन्ना लो पया भस पांवदा ए
पंजां पीरां दी आमद तुरत होई हथ बन्न सलाम करांवदा ए

शब्दार्थ
<references/>