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134 / हीर / वारिस शाह - अवतरण इतिहास
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<poem><br />
हीर आखया वाड़ के फले अंदर गल पा रसा मुंह घुट घतो<br />
लैके कुतके कुढन माछियां दे धड़ धड़े ही मार के कुट घतो<br />
टंगों पकड़ के लक विच पा जफी किसे बोबड़े दे विच सुट घतो<br />
मारो एसनूं लाके अग्ग झुगी साड़ बाल के चीज सब लुट घतो<br />
वारस शाह मियां डाहडी भंवरी दा जे कोई वाल दिसे सब पुट घतो<br />
</poem><br />
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Lalit Kumar