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148 / हीर / वारिस शाह

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कैदो बाहुड़ी ते फरयाद कूके धीयां वालयो करो नयां मियां
मेरा हट पसारी दा लुटया ई कोल वेखदा पिंड गिरां मियां
मेरे भंग अफीम ते पोसत लुड़िया होर नयामतां दा क्या नां मियां
मेरी तुसंा दे नाल ना सांझ कोई पिंन टुकड़े पिंड दे खां मियां
तोते बाग उजाड़दे मेवयां दे अते फाह लयांवदे कां मियां

शब्दार्थ
<references/>