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152 / हीर / वारिस शाह

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जदों लाल कचौरी नूं खेड सइयां सभो घरो घरी उठ चलियां नी
रांझा हीर नयारड़े हो सुते कंधीं नदी दीयां महियां मलियां नी
पए वेख के दोहां इकठयां नूं टंगां लंडे दियां तेज हो चलियां नी
परे विच कैदो आन पग मारे चलो वेख लौ गलां अवलियां ने

शब्दार्थ
<references/>