भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

15 अगस्त 1947 / कमल जीत चौधरी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:31, 13 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमल जीत चौधरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम बरत रहे हो रोज़
जनसमूह पर
13 अप्रैल 1919

मैं पड़ोसियों का
मुँह देखे बगैर
23 मार्च 1931
हो जाने के लिए तैयार हूँ

आएगा
ज़रूर आएगा
15 अगस्त 1947
 भी आएगा
       
आएगा
और अब की कभी न जाएगा
     
जनता जाने नहीं देगी