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164 / हीर / वारिस शाह

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जे तूं सोहणी होयके बणें सौकन असीं इक थीं इक चढ़ंदियां हां
रब्ब जाणदा ए सभा उमर सारी असीं एस महबूब दियां बंदियां हां
असी एस के मगर दीवानियां हां भावें चंगियां ते भावें संदियां हां
उह असां दे नाल है चंद हुनदा असी खितीआं<ref>तारों का जमघट</ref> नाल सुहंदियां हां
उह मारदा गालियां दे सानूं असीं फेर मुड़ चौखने<ref>कुरबान होना</ref> हुंदियां हां
जिस वेलड़े दा साथों रूस आया असी हंझू रत दे रूंदियां हां
एह दे थां गुलाम लौ होर साथों ममनून<ref>कृतज्ञ</ref> अहसान दीयां हुंनियां हां
रांझे लाल बाझों असीं सवार होइयां कूंजां डार थीं असीं विछुंनियां हां
जोगी लोकां नूं मुनके करन चेले असीं एसदे इशक ने मुनियां हां
वारस शाह रांझे अगे हथ जोड़ां तेरे प्रेम दी अग्ग ने भुनियां हां

शब्दार्थ
<references/>